Department of Nagpuri
गोस्सनर कॉलेज राँची विश्वविद्यालय का पहला कॉलेज हैं, जहाँ झारखंड की जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई प्रारंभ की गयी। जनजातीय भाषाओं में मुंडारी, कुड़ुख के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में नागपुरी का अध्यापन भी प्रारंभ किया गया। इसमें गोस्सनर कॉलेज के फाउंडर प्रिंसिपल डॉ. निर्मल मिंज का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यूँ कहें उन्हीें के बदौलत झारखंडी भाषाओं की पढ़ाई प्रारंभ हुई। डॉ. निर्मल मिंज की भाषायी प्रेम और दूरदृष्टि का ही यह परिणाम था। झारखंडी भाषाओं की गोस्सनर कॉलेज में पढ़ाई प्रारंभ होना एक तरह से वरदान साबित हुआ है, इसके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए। नागपुरी छोटानागपुर की प्रांजल, सुमधुर, सरस और सरल भाषा है। यह संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग में लायी जाती है। नाग जाति, सदान और कई आदिवासियों की यह मातृभाषा भी है। गाँव के बाजारों, वाहनों में सफर करते समय भी यह संपर्क भाषा के रूप बोली जाती है। नागवंश की यह राजपाट की भाषा रही है। नागवंश प्रथम संस्थापक राजा फणिमुकुट राय ने 83 ई. में राजगद्दी संभालते नागपुरी को राजपाट की भाषा बनायी। ऐसी प्राचीन भाषा की पढ़ाई होना एक ऐतिहासिक घटना है, जो कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य डॉ. निर्मल मिंज की सोच का प्रतिफल है। गोस्सनर कॉलेज की स्थापना 01 नवंबर 1971 ई. में हुई। स्थापना काल से ही जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई की गयी। प्रारंभ नागपुरी का अध्यापन प्रोफेसर बाल मुकुंद बड़ाईक ने प्रारंभ किया। तत्पश्चात डॉ गोविंद साहू, डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने भी कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। इसके बाद डॉ. राम प्रसाद नागपुरी विभाग के अध्यक्ष बने। डॉ. राम प्रसाद 2018 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद डॉ. कोरनेलियुस मिंज नवंबर 2020 से नागपुरी विषय सहायक प्राध्यापक हैं।